विद्यालय में भी जब उसके कक्षा के बच्चों को कोई विषय न मिलता तो वो आपस में इन्ही शब्दों को बोलके हंसी ठिठोली करते ।
कई बार तो उसका कालर खींचते,कई बार उसे धक्का दे देते और कई बार मास्टरजी से झूठी शिकायत करके मार खिलाते ।सांतवी कक्षा का सुमित हंस के सुन लेता था, सह लेता था बल्कि उसे अपने साथियों को आनंदित देख अच्छा लगता था ।
लेकिन बात सिर्फ इतनी नहीं थी सुमित एक बहुत गरीब घर से आता था और उनके कसबे में सिर्फ येही एक प्राथमिक विद्यालय था अतः
सभी बच्चे आते थे और धनाड्य परिवार के ज्यादा थे ।
सुमित के मनमे पढने की रूचि बहुत थी और उस रास्ते में ये हंसी ठिठोली उसे बुरी नहीं लगती थी भले वो हमेशा उस ही लेके कर ही हो
और अब तो सुमित को अपने स्कूल में तीन साल हो रहे थे ।
स्वभाव से ही शांत व प्रसन्नचित सुमित न विद्यालय में और न ही घर में विद्यालय के काम से निजात पा पाता । कारण की उसके सहपाठियों के
गृहकार्य का भी ज़िम्मा उसी का होता था ऐसा शिक्षक ने नहीं उसके सहपाठियों ने ही अपने रौबवश किया था ।
ये शायद उसके शांत रहने का जुरमाना था या एक गरीब होके भी अमीरों के साथ एक स्कूल में पढने का दंड ।
बहरहाल सुमित इन सब बातों से अनभिज्ञ था या शायद रहना ही चाहता था उसे अपने पिता की मार व ज़बरदस्ती मजदूरी करने जाने
से स्कूल में सबसे दबकर रहना उचित प्रतीत होता था ।
सुमित पढ़ाई में तेज़ था। जब उसके कक्षा अध्यापक कहते की तू
बड़ा आदमी बनेगा तो ये शब्द उसे ऐसे लगते जैसे उसे हर ख़ुशी मिल गयी ।
लेकिन ये ख़ुशी चंद दिनों की थी और सुमित का अंदेशा की कहीं उसकी पढ़ाई छूट न जाए सही निकला ।
बात वार्षिक परीक्षा के दिन की है सभी विद्यार्थी अपना परीक्षापत्र हल कर रहे थे लेकिन जिन्होंने साल भर मस्ती की उन्हें तो बस नक़ल का सहारा था ।सबको मालूम था एक अन्य सहपाठी भानू नक़ल ले के आया है और सब मास्टरजी से नज़र बचा बचा कर
किताब ले रहे थे और मेज़ में छुपा कर लिख रहे थे । सुमित चूँकि बीच की पंक्ति में बैठा था या सहपाठियों द्वारा बैठाया गया था तो उसे न चाह कर भी नक़ल की किताब एक ओर से दूसरी ओर देनी पड़ रही थी। लेकिन ऐसा कब तक चलता आखिर कक्ष-निरीक्षक की नज़र किताब पर पड़ गयी और भानू का नाम सामने आने लगा ।
लेकिन भानू ने बड़े आत्मविश्वास से दोष सुमित पर मढ़ दिया। सारी कक्षा अवाक थी,सबकी निगाहें सुमित की तरफ थीं और सुमित ने अपना सर झुकाकर इस कुकृत्य की स्वीकृति दे दी ।उसकी परीक्षा रद्द कर दी गयी और कुछ दिनों के बाद सड़क हादसे में पिता की मृत्यु हो गयी ।
सुमित की प्राथमिकताएं बदल चुकी थी अब उसे पढना नहीं अपनी माँ और छोटे भाई और बहन का भरण पोषण करना था । उसे जो भी काम मिलता कर देता,उसकी आखों से पढ़ाई बहुत दूर हो चुकी थी,ना ही उसमे पढने की इच्छा थी क्यूंकि उसे लगता था पढ़ाई लिखी तो सभ्रांत होने के लिए की जाती और इसके लिए पढने से ज्यादा सीखने और मनन की आवशयकता होती,वैसे सुमित के दिल में अपने सहपाठियों द्वारा किया हुआ कुकृत्य याद आता रहता था,उसका दिल फिर भी उन्हें दोषी नहीं ठहरता उसे दुःख इस बात का था की उसी साल से छात्रवृत्ति की शुरुआत होनी थी और इसके लिए उसने जी-तोड़ मेहनत की थी ।
बहरहाल वक़्त रुकता नहीं और पंद्रह साल बीत गए ।
भानू अमेरिका से ऊँची पढाई कर लौटा था और अपने पिता के भूमि-गृह निर्माण व्यवसाय में हाथ बटाने लगा । वो खुद भी एक बहुत बड़ा मल्टी- काम्प्लेक्स बनवा रहा था ।
एक दिन वो अपनी वर्क-साईट पर आया जहाँ उसने देखा की ठेकेदार सभी मजदूरों को पैसे दे रहा था । एक आदमी को पैसे देते वक़्त वो थोडा चिल्लाने लगा भानू पास गया तो माजरा समझा । उस आदमी को ठेकेदार ने पांच दिन के पैसे बकाये किए थे और आज देते समय ठेकेदार चार दिन की ही दिहाड़ी बाकी है ऐसा कहके चार दिन के ही पैसे दे रहा था और वो आदमी जो अपनी बेतरतीब से उगी दाढ़ी के कारण अपनी उम्र से अधिक लग रहा था ठेकेदार को याद दिला रहा था। भानू को अपने मलिकपने का एहसास हो आया और वो ठेकेदार का पक्ष लेते हुए बोलने लगा ''इस तरह से कोई भी ज्यादा दिन कहेगा तो क्या सच मान लिया जाएगा,देखो ये ठेकेदार ग़लत क्यूँ बोलेगा, ए तुम चार दिन का पैसा ले सकते हो तो बताओ । तुम्हारे हिसाब से सब चलने लगा तब तो ये प्रोजेक्ट बन चुका सारा पैसा तुम्ही लोगों
में खर्च हो जायेगा । अरे ज्यादा कमाना था तो ज्यादा पढना चाहिए नहीं तो ज्यादा काम करो । हाँ तो बताओ तुम्हे चार दिन के पैसे चाहिए की नहीं ।"
उस मजदूर ने सिर्फ इतना कहा ''अच्छा ठीक है'' । ये कहके वो ठेकेदार से पैसे लेके अपनी झोपडी की तरफ चल पड़ा ।
कुछ प्रश्न जो बरबस ही इस कहानी से निकलते हैं :
१. क्या समाज में सामान शिक्षा मात्र शैक्षिक पाठ्य-क्रम सामान कर देने से हो जाएगी ?
२. क्या बच्चों को बचपने से ही अमीरी गरीबी का पाठ हम अनजाने में पढ़ा जाते हैं ?
३. क्या सुमित का नक़ल न करने के बावजूद नक़ल स्वीकार करना ग़लत था ?
४. क्या पढ़ाई के आधार बिंदु सभ्रान्तता,सहिष्णुता,धैर्य,संतोष हैं या मान,दंभ,चतुराई,घमंड व वस्तुवादिता ?
५. क्या कई बार अमीर अथवा विरासत से हुए अमीर भानू की तरह जीने वाले जीवन भर जीवन तत्त्व नहीं जान पाते ? क्या वे नहीं जान पाते जीवन तत्त्व मात्र स्वार्थ,चतुराई,क्रोध,दंभ में नहीं शान्ति,निस्वार्थता,त्याग व मानवता में निहित है ?
६. क्या सत्य अथवा अच्छाई को किसी प्रमाण अथार्त डिग्री की अपेक्षा या आवश्यकता होती है ?या ये स्वयं में प्रमाण है ?
७. क्या सत्य अथवा अच्छाई किसी फल की इच्छा के लिए किए जाते हैं या ये स्वयं ही फल हैं ?
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDelete